यह फ़िल्म उन "बेहोश ख्यालों और कामुक कल्पनाओं" को दर्शाती है जो हर किसी ने काम पर जाते समय कम से कम एक बार ज़रूर महसूस की होंगी। अलोकप्रिय, कंगाल और नीरस... मैं एक बेबस आदमी हूँ, लेकिन इत्तेफ़ाक से मेरी मुलाक़ात एक खूबसूरत औरत से होती है जो मेरे बस की बात नहीं... "मैं उसे पुकारना चाहता हूँ, पर पुकार नहीं सकता... लेकिन मैं उसे अपनी ओर देखते हुए ज़रूर महसूस कर सकता हूँ..." मेरे और उसके भविष्य में क्या होगा?